MA Semester-1 Sociology paper-III - Social Stratification and Mobility - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2683
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

प्रश्न- जेण्डर समाजीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर -

जेण्डर समाजीकरण
(Gender Socialization)

समाजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जो नवजात शिशु को सामाजिक प्राणी बनाती है। इस प्रक्रिया के अभाव में व्यक्ति सामाजिक प्राणी नहीं बन सकता। इसी से सामाजिक व्यक्तित्व का विकास होता है। सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत के तत्वों का परिचय भी इसी से प्राप्त होता है। समाजीकरण से न केवल मानव जीवन का प्रभाव अखण्ड व सतत रहता है, अपितु इसी से मानवोचित गुणों का विकास होता है और व्यक्ति सुसभ्य व सुसंस्कृत भी बनता है। समाजशास्त्रियों, समाज- मनोवैज्ञानिकों, मानवशास्त्रियों तथा शिक्षाशास्त्रियों द्वारा समाजीकरण शब्द का प्रयोग उस प्रक्रिया के लिए किया जाता है जिसके द्वारा आदर्शों, प्रथाओं एवं विचारधाराओं का आन्तरीकरण होता है। इसी के माध्यम से व्यक्ति में वे क्षमताएँ एवं आदतें विकसित होती हैं जो समाज में रहने के लिए अनिवार्य मानी जाती हैं। इस प्रक्रिया के माध्यम से प्रत्येक समाज अपनी सामाजिक एवं सांस्कृतिक निरन्तरता को बनाए रखता है। समाज के मूल्यों एवं आदर्शों का आन्तरीकरण भी सीख की इसी प्रक्रिया के माध्यम से होता है सीखने की यही प्रक्रिया समाजशास्त्र में समाजीकरण कही जाती है।

जेण्डर विकास की प्रक्रिया में समाजीकरण की प्रकृति को निम्न प्रकार समझा जा सकता है-

(1) समाजीकरण की प्रकृति और जेण्डर - परिवार में एक बच्चे के साथ उसके लिंगानुसार अलग-अलग व्यवहार किया जाता है, क्योंकि परिवार में ही बच्चों को सर्वप्रथम अपने जेण्डर के बारे में ज्ञान प्राप्त होता है। उसके जेण्डर के आधार पर ही उसका विकास किया जाता है और उसे उसी प्रकार के खिलौने, कपड़े आदि प्रदान किए जाते हैं। इस प्रकार से माता-पिता द्वारा बचपन से ही यह अवधारणा बालक के हृदय में उत्पन्न कर दी जाती है कि जीवन में उसकी किस प्रकार की भूमिका होगी, क्योंकि हमारे पितृसत्तात्मक समाजों में पुरुषों का समाजीकरण बिल्कुल अलग ढंग से किया जाता है। पुरुषों से यह आशा की जाती है कि उनमें पुरुषोचित गुण पूरी तरह से विकसित हों, जैसे- स्वतन्त्रता, आत्मनिर्भरता, प्रभावी सक्रियता, सांसारिकता, निर्णय लेने की क्षमता, नेतृत्व का गुण, स्वावलम्बन, तार्किकता, प्रतियोगिता आदि। इसका कारण यह है कि इन गुणों से युक्त पुरुषों पर ही समाज गर्व करता है तथा किसी नारी में यह गुण उत्पन्न होने पर समाज द्वारा पौरुषीय गुण वाली स्त्री बताकर उसमें परिवर्तन लाने के लिए समाज दबाव बनाता है।

(2) परिवार में निजी एवं सार्वजनिक द्विविभाजन - आधुनिक समाज में निजी एवं सार्वजनिक रूप से भी जेण्डर के आधार पर द्विविभाजन पाया जाता है। आजकल के समाज में महिलाओं एवं पुरुषों दोनों में प्रत्येक क्षेत्र में, जैसे—कार्य क्षेत्र, कार्य के वेतन, निर्णय क्षमता, नेतृत्व की क्षमता आदि सभी में भेदभाव किया जाता है। प्रत्येक समाज में महिलाओं के लिए अलग से व्यवहार प्रतिमानों की रचना की गई है। इसलिए उनसे यह आशा की जाती है कि वे घर की चारदीवारी में रहकर परिवार के और उसके सदस्यों के विकास में ही अपना जीवन समर्पित कर दें।

इस प्रकार स्त्रियों में स्वतन्त्र विचार करने की क्षमता का विकास ही नहीं होने दिया जाता। नारी को स्वयं के विकास के लिए कुछ भी समय निकालो की प्रेरणा न देकर उनको अपना जीवन परिवार के विकास में लगाने की ही प्रेरणा परिवार व समाज द्वारा दी जाती है। जबकि पुरुषों से आशा की जाती है कि वे घर से बाहर निकलकर अपना और समाज का विकास करें। इस प्रकार यदि देखा जाए तो सभी सामाजिक बन्धन, रीति-रिवाज रूढ़ियाँ आदि केवल महिलाओं के लिए ही हैं। हमारे पुरुष प्रधान समाज में पुरुष वर्ग पूरी तरह से आज स्वच्छन्द जीवन जीने के लिए स्वतन्त्र है।

(3) परिवार में जेण्डर भूमिका - समाज में नर-नारी के समाजीकरण का एक आधार यह भी है कि पुरुष बच्चों के लालन-पालन की कोई भी जिम्मेदारी अपने ऊपर नहीं लेते हैं। परिवार में बच्चे के लालन-पालन की पूर्ण जिम्मेदारी महिला को ही सौंप दी जाती है। यह भी कहा गया है कि एक बच्चे को समाज के अनुरूप बनाने में महिला की महत्त्वपूर्ण भूमिका है, क्योंकि महिला ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में अपने गुणों को स्थानांतरित करती है। समाज में एक बालक का समाजीकरण करने में वस्तुतः माँ की ही महत्त्वपूर्ण भूमिका है और माँ ही बच्चे की प्रथम शिक्षिका होती है, क्योंकि बालक को समाज के मानदण्डों का पालन करने की और उन बातों को नहीं करने की जो समाज के प्रतिकूल है, शिक्षा परिवार में केवल माँ ही देती है।

(4) समाजीकरण की दृष्टि से नारी की भूमिका – हिन्दू परिवारों में महिलाओं को न तो किसी प्रकार का कोई निर्णय लेने का अधिकार दिया जाता है और न ही घर की चारदीवारी के बाहर ही क्रियाओं में किसी प्रकार से भाग लेने का अधिकार ही उन्हें दिया जाता है। यही नहीं महिलाओं से आशा की जाती है कि वे अपने अधिक से अधिक समय को गृहकार्य में ही व्यतीत करें। समाज उनके व्यवहार में कुछ ऐसे गुणों की आशा करता है कि महिलाओं में सहनशीलता, समर्पण, परोपकारिता आदि जैसे गुण अवश्य होने चाहिएं।

(5) समाज़ में स्तरीकरण - समाज में स्तरीकृत एवं सोपानीकृत व्यवस्था का प्रचलन रहा है, क्योंकि कोई भी समाज चाहे वह आदिम समाज हो या चाहे आधुनिक समाज हो, इसकी व्यवस्था के अपवाद नहीं है। स्तरीकृत समाज के आधार भी हमेशा समान नहीं रहे है, क्योंकि यह हमेशा इस आधार पर अवलम्बित रहे हैं कि किसी समाज के प्राथमिक मूल्य क्या है ? स्तरीकरण की इस प्रक्रिया ने ही हमारे समाज को वर्ग, जाति आदि घटकों में सीमित कर दिया है। इसीलिए समाज में अनेक स्तरों की रचना हुई है। इस सामाजिक स्तरीकरण में भी महिलाओं को पुरुषों से अलग का ही स्तर दिया गया है। अतः जेण्डर के आधार पर समाज में नारी की भूमिकाएँ भी अलग-अलग निर्धारित की गई हैं, जिनके माध्यम से नारी की प्रस्थिति, भूमिका पहचान, सोच, मूल्य एवं अपेक्षाओं को मनमाफिक रूप से गढ़ा है।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि समाजीकरण पर भी जेण्डर का बहुत अधिक प्रभाव है, क्योंकि एक पुरुष का समाजीकरण इस प्रकार से होता है कि वह स्वयं जागरूक बने तथा स्वयं के विकास के विषय में अधिक से अधिक सोचे, जबकि स्त्री का समाजीकरण इस प्रकार से किया जाता है कि उसके परिवार के सदस्यों की उन्नति में ही उसकी भी उन्नति है। इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि समाज में विद्यमान इस प्रकार के द्विविभाजन को कम किया जाए और महिलाओं को भी पुरुषों के समान आगे बढ़ने और देश एवं समाज के लिए कुछ करने के अवसर दिए जाने चाहिएं ताकि समाज में महिलाओं को भी सशक्त भूमिका निभा सकने योग्य बनने की समुचित प्रेरणा दी जा सके।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण क्या है? सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  2. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की क्या आवश्यकता है? सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों को स्पष्ट कीजिये।
  3. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण को निर्धारित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  4. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण किसे कहते हैं? सामाजिक स्तरीकरण और सामाजिक विभेदीकरण में अन्तर बताइये।
  5. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण से सम्बन्धित आधारभूत अवधारणाओं का विवेचन कीजिए।
  6. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के सम्बन्ध में पदानुक्रम / सोपान की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- असमानता से क्या आशय है? मनुष्यों में असमानता क्यों पाई जाती है? इसके क्या कारण हैं?
  8. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूप का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  9. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के अकार्य/दोषों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  10. प्रश्न- वैश्विक स्तरीकरण से क्या आशय है?
  11. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण की विशेषताओं को लिखिये।
  12. प्रश्न- जाति सोपान से क्या आशय है?
  13. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता क्या है? उपयुक्त उदाहरण देते हुए सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  14. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- सामाजिक वातावरण में परिवर्तन किन कारणों से आता है?
  16. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की खुली एवं बन्द व्यवस्था में गतिशीलता का वर्णन कीजिए तथा दोनों में अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता का विवेचन कीजिए तथा भारतीय समाज में गतिशीलता के निर्धारक भी बताइए।
  18. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता का अर्थ लिखिये।
  19. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के पक्षों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  20. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  21. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के मार्क्सवादी दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  22. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण पर मेक्स वेबर के दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  23. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विभिन्न अवधारणाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  24. प्रश्न- डेविस व मूर के सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  25. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  26. प्रश्न- डेविस-मूर के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  27. प्रश्न- स्तरीकरण की प्राकार्यात्मक आवश्यकता का विवेचन कीजिये।
  28. प्रश्न- डेविस-मूर के रचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिये।
  29. प्रश्न- जाति की परिभाषा दीजिये तथा उसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये।
  30. प्रश्न- भारत में जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  31. प्रश्न- जाति प्रथा के गुणों व दोषों का विवेचन कीजिये।
  32. प्रश्न- जाति-व्यवस्था के स्थायित्व के लिये उत्तरदायी कारकों का विवेचन कीजिये।
  33. प्रश्न- जाति व्यवस्था को दुर्बल करने वाली परिस्थितियाँ कौन-सी हैं?
  34. प्रश्न- भारतवर्ष में जाति प्रथा में वर्तमान परिवर्तनों का विवेचन कीजिये।
  35. प्रश्न- जाति व्यवस्था में गतिशीलता सम्बन्धी विचारों का विवेचन कीजिये।
  36. प्रश्न- वर्ग किसे कहते हैं? वर्ग की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  37. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्था के रूप में वर्ग की आवधारणा का वर्णन कीजिये।
  38. प्रश्न- अंग्रेजी उपनिवेशवाद और स्थानीय निवेश के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में उत्पन्न होने वाले वर्गों का परिचय दीजिये।
  39. प्रश्न- जाति, वर्ग स्तरीकरण की व्याख्या कीजिये।
  40. प्रश्न- 'शहरीं वर्ग और सामाजिक गतिशीलता पर टिप्पणी लिखिये।
  41. प्रश्न- खेतिहर वर्ग की सामाजिक गतिशीलता पर प्रकाश डालिये।
  42. प्रश्न- धर्म क्या है? धर्म की विशेषतायें बताइये।
  43. प्रश्न- धर्म (धार्मिक संस्थाओं) के कार्यों एवं महत्व की विवेचना कीजिये।
  44. प्रश्न- धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिये।
  45. प्रश्न- समाज एवं धर्म में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये।
  46. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में धर्म की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
  47. प्रश्न- जाति और जनजाति में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  48. प्रश्न- जाति और वर्ग में अन्तर बताइये।
  49. प्रश्न- स्तरीकरण की व्यवस्था के रूप में जाति व्यवस्था को रेखांकित कीजिये।
  50. प्रश्न- आंद्रे बेत्तेई ने भारतीय समाज के जाति मॉडल की किन विशेषताओं का वर्णन किया है?
  51. प्रश्न- बंद संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  52. प्रश्न- खुली संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  53. प्रश्न- धर्म की आधुनिक किन्हीं तीन प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये।
  54. प्रश्न- "धर्म सामाजिक संगठन का आधार है।" इस कथन का संक्षेप में उत्तर दीजिये।
  55. प्रश्न- क्या धर्म सामाजिक एकता में सहायक है? अपना तर्क दीजिये।
  56. प्रश्न- 'धर्म सामाजिक नियन्त्रण का प्रभावशाली साधन है। इस सन्दर्भ में अपना उत्तर दीजिये।
  57. प्रश्न- वर्तमान में धार्मिक जीवन (धर्म) में होने वाले परिवर्तन लिखिये।
  58. प्रश्न- जेण्डर शब्द की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।
  59. प्रश्न- जेण्डर संवेदनशीलता से क्या आशय हैं?
  60. प्रश्न- जेण्डर संवेदशीलता का समाज में क्या भूमिका है?
  61. प्रश्न- जेण्डर समाजीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- समाजीकरण और जेण्डर स्तरीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  63. प्रश्न- समाज में लैंगिक भेदभाव के कारण बताइये।
  64. प्रश्न- लैंगिक असमता का अर्थ एवं प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  65. प्रश्न- परिवार में लैंगिक भेदभाव पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- परिवार में जेण्डर के समाजीकरण का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  67. प्रश्न- लैंगिक समानता के विकास में परिवार की भूमिका का वर्णन कीजिये।
  68. प्रश्न- पितृसत्ता और महिलाओं के दमन की स्थिति का विवेचन कीजिये।
  69. प्रश्न- लैंगिक श्रम विभाजन के हाशियाकरण के विभिन्न पहलुओं की चर्चा कीजिए।
  70. प्रश्न- महिला सशक्तीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- पितृसत्तात्मक के आनुभविकता और व्यावहारिक पक्ष का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  72. प्रश्न- जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता से क्या आशय है?
  73. प्रश्न- पुरुष प्रधानता की हानिकारकं स्थिति का वर्णन कीजिये।
  74. प्रश्न- आधुनिक भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति में क्या परिवर्तन आया है?
  75. प्रश्न- महिलाओं की कार्यात्मक महत्ता का वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- सामाजिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता का वर्णन कीजिये।
  77. प्रश्न- आर्थिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता की स्थिति स्पष्ट कीजिये।
  78. प्रश्न- अनुसूचित जाति से क्या आशय है? उनमें सामाजिक गतिशीलता तथा सामाजिक न्याय का वर्णन कीजिये।
  79. प्रश्न- जनजाति का अर्थ एवं परिभाषाएँ लिखिए तथा जनजाति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- भारतीय जनजातियों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  81. प्रश्न- अनुसूचित जातियों एवं पिछड़े वर्गों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- जनजातियों में महिलाओं की प्रस्थिति में परिवर्तन के लिये उत्तरदायी कारणों का वर्णन कीजिये।
  83. प्रश्न- सीमान्तकारी महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु किये जाने वाले प्रयासो का वर्णन कीजिये।
  84. प्रश्न- अल्पसंख्यक कौन हैं? अल्पसंख्यकों की समस्याओं का वर्णन कीजिए एवं उनका समाधान बताइये।
  85. प्रश्न- भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की स्थिति एवं समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों से क्या आशय है?
  87. प्रश्न- सीमान्तिकरण अथवा हाशियाकरण से क्या आशय है?
  88. प्रश्न- सीमान्तकारी समूह की विशेषताएँ लिखिये।
  89. प्रश्न- आदिवासियों के हाशियाकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  90. प्रश्न- जनजाति से क्या तात्पर्य है?
  91. प्रश्न- भारत के सन्दर्भ में अल्पसंख्यक शब्द की व्याख्या कीजिये।
  92. प्रश्न- अस्पृश्य जातियों की प्रमुख निर्योग्यताएँ बताइये।
  93. प्रश्न- अस्पृश्यता निवारण व अनुसूचित जातियों के भेद को मिटाने के लिये क्या प्रयास किये गये हैं?
  94. प्रश्न- मुस्लिम अल्पसंख्यक की समस्यायें लिखिये।

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